23 जुल॰ 2009
हारा वही जो लड़ा नहीं......
जो लड़ा नहीं है ......
और ,
हम लड़ते रहे हर वो लडाई ,
जिनसे है इंसानियत शर्मसार ,
हम ख़म ठोककर खड़े रहे तब भी ,
जब शासन प्रशासन के आगे ,
मास्ट हेड भी झुका लेते थे अपना सर
हमने शीश झुकाया - उन लोंगो
और कामों के लिए ,
जिनसे संवरता है हम सब का कल ,
हम वीरानों में थे , हम थे अट्टहासों के बीच भी ,
हम चीत्कारों को सुन रहे थे
और महसूस कर रहे थे सिसकियों को भी ,
हर दुःख , हर सुख में
हर शर्म में और हर गौरव में
हम थे आपके साथ ,
हर बार हमने बताया सच ,
क्योकि हम हमेशा से थे सच के साथी ,
और हैं साहस के साझीदार
क्योकि हम चाहते हैं
सबके लिए स्वाभिमान
27 फ़र॰ 2009
25 जन॰ 2009
आठ साल के बालक की अद्भुत प्रतिभा
कहते हैं प्रतिभा उम्र की मोहताज नहीं होती। इसका साक्षात उदाहरण है 8 साल का अमन रहमान। यह होनहार बालक देहरादून के कालेज आफ इंट्रेक्टिव आट्र्स में कम्प्यूटर से निर्मित जीव प्रोत्साहन फिल्म पर स्नातक छात्रों को पढ़ा रहा है। अपनी उम्र से दुगुने बीएससी लेवल के छात्र-छात्राओं को एनिमेशन के गुर सिखाने वाले इस अद्भुत प्रतिभा को देखकर अच्छे-अच्छे दांतो तले अंगुली दबा लेते हैं। चुक्खूवाला में एक छोटे से स्कूटर मैकेनिक एम0 रहमान के घर 26 जुलाई 2000 में जन्मे सेंट थामस के कक्षा चार के छात्र अमन को अपने भाई को कम्प्यूटर से जूझते देख इसका शौक जगा। पिता ने मोहित के लिए सेकंड हैंड कम्प्यूटर खरीदा था लेकिन उस पर कब्जा जमा लिया अमन ने। लिहाजा, अब कम्प्यूटर था और अमन। अंगुलियों ने वह जादू जगाया कि बड़े-बड़े उसके कायल हो गए। बेसिक सीख जल्द ही वह पिता से तमाम साटवेयर लाने की जिद करने लगा। पुत्र की धुन ने पिता को भी उत्साहित कर दिया। हिल्ट्रान सेंटर आॅफ एक्सीलेंस में अपनी मेधा से उसने मल्टीमीडिया में वह स्पीड पकड़ी कि अच्छों-अच्छों की पकड़ से बाहर हो गया। अब तक वह डाटा लाजिस्टिक्स, आजीविका सुधार परियोजना आदि के लिए वेब पेज भी डिजाइन कर चुका है। ‘द एनिमेटर‘ के नाम से मशहूर दून के इस नन्हें जीनियस की आवाज अब लंदन तक जा पहुंची है। लंदन की एक एजेंसी ने अमन की इस खूबी पर समाचार भी प्रकाशित किया है। कालेज ने तो अमन का नाम ‘गिनीज बुक आफ वर्ड रिकॉर्ड ‘ में विश्व के सबसे कम उम्र के प्रवक्ता रूप में शुमार करने की अपील की है। इस 8 वर्षीय नन्हें जीनियस अमन रहमान को ढेरों बधाई.......!!!
नहीं मारो मुझे अपने गर्भ में माँ ... ...
आज मुझे जी लेने दो,
कल मैं एक नन्ही छाँव बनकर आपको ख़ुशियाँ दूँगी ... ...
आप पर कभी बोझ नहीं बनूँगी ... ...
बस आज मुझे जन्म ले लेने दो माँ ... ...
कल आपके जीवन में,
मैं बहुत सी ख़ुशियाँ भर दूँगी ... ...
इस संसार में मुझे आने से मत रोको,
क्या आप मुझे घर, परिवार,
समाज के डर से मार रही हैं?
क्योंकि मैं एक लड़की हूँ ... ...
आप तो चाहती हैं न माँ, मैं जन्म लूँ ... ...
तो बस आप समाज या परिवार की परवाह मत करो ... ...
क्या आप इतनी निष्ठुर हो सकती हैं ... ...
अपने ही अस्तित्व को गर्भ में ही मिटा देंगी ... ...
सिर्फ़ परिवार, समाज के डर से ... ...
नहीं माँ, नहीं ... ...
मैं आपके आँगन में ख़ुशियों के फूल खिला दूँगी ... ...
मैं एक नन्ही छाँव, मुझे इस संसार में आने दो माँ ... ...
Posted by purnima
Jeevan Ki Ek Kala *Umang*
वतन की खस्ताहाली से मतलब नहीं उनको
वतन के शिल्पी होकर जो गददार बन बैठे।
झौंके बन चुके हैं हम हवाओं केतेरी आँखों को
अब हमारा इंतजार क्यों है।
‘उदय’ तेरी नजर को, नजर से बचाए,
जब-भी उठे नजर, तो मेरी नजर से आ मिले।
( नजर = आँखें , नजर = बुरी नजर/बुराई )
‘उदय’ तेरी आशिकी, बडी अजीब है
जिससे भी तू मिला, उसे तन्हा ही कर गया।
‘उदय’ तेरे शहर में, हसीनों का राज है
तुम भी हो बेखबर, और हम भी हैं बेखबर ।
न छोडी कसर उन ने, कांटो को चुभाने में,
खड़े हैं अब अकेले ही, सँजोकर आरजू दिल में
न चाहो उन्हे तुम, जिन्हे तुम चाहते होचाहना है,
तो उन्हे चाहो, जो तुमको चाहते हैं।
'उदय'कम से कम, अब इन्हें छलकने तो न दो ।
सौजन्य - श्री श्याम कोरी www.netajee.com
shrinetajee@gmail.com
20 जन॰ 2009
वेतन का सच और सवाल
पिता- कितना मिलता है?
पुत्र- काम चल जाता है।
पिता- कितना?
पुत्र- खर्चा इतना कि बचता नहीं।
पिता- कितना?
पुत्र- स्कूल, दवा और किराया।
पिता- कितना?
पुत्र- साल भर से नया कपड़ा नहीं खरीदे।
पिता- कितना?
पुत्र- बैंक में एक रुपया नहीं।
पिता- कितना?
पुत्र- दिल्ली में रहना महंगा है।
पिता- कितना?
पुत्र- टैक्स भी भरना है।
पिता- कितना?
पुत्र- आपके पास कुछ है?
पिता- है। चाहिए।
पुत्र- कितना?
पिता- उतना तो नहीं।
पुत्र- कितना?
पिता- रिटायरमेंट के बाद मकान में लग गया।
पुत्र- कितना?
पिता-चुप...
पुत्र- चुप
नोट-( कहानी ख़त्म नहीं हुई। बस आप बता दीजिए किस किस घर में इस सवाल का जवाब बाप और बेटे ने ईमानदारी से दिया है)