25 जन॰ 2009

शेरों की महफिल

वतन की खस्ताहाली से मतलब नहीं उनको

वतन के शिल्पी होकर जो गददार बन बैठे।

झौंके बन चुके हैं हम हवाओं केतेरी आँखों को

अब हमारा इंतजार क्यों है।

‘उदय’ तेरी नजर को, नजर से बचाए,

जब-भी उठे नजर, तो मेरी नजर से आ मिले।

( नजर = आँखें , नजर = बुरी नजर/बुराई )

‘उदय’ तेरी आशिकी, बडी अजीब है

जिससे भी तू मिला, उसे तन्हा ही कर गया।

‘उदय’ तेरे शहर में, हसीनों का राज है

तुम भी हो बेखबर, और हम भी हैं बेखबर ।

न छोडी कसर उन ने, कांटो को चुभाने में,

खड़े हैं अब अकेले ही, सँजोकर आरजू दिल में

न चाहो उन्हे तुम, जिन्हे तुम चाहते होचाहना है,

तो उन्हे चाहो, जो तुमको चाहते हैं।

हुई आँखें नम, तेरे इंतजार में

'उदय'कम से कम, अब इन्हें छलकने तो न दो ।

सौजन्य - श्री श्याम कोरी www.netajee.com
shrinetajee@gmail.com

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